Sunday, September 26, 2010

बिहार के प्रवासी मजदूर एंव आगामी विधान सभा चुनाव



बिहार के प्रवासी मजदूर एंव आगामी विधान सभा चुनाव

सदरे आलम
सितम्बर 2010
बढ़ती बेरोज़गारी एंव बदहाल होती स्थिति के कारण रोज़गार की तलाश में बिहार से मजदूरों का प्रवास करना वर्षों से लगातार जारी है। 1990 के भूमण्डलीकरण के कारण उस में और बढ़ोत्तरी हुई है एंव पिछले 10 सालों से लगातार बाढ़ व सूखे के कारण इसके प्रतिशत में और एजाफा हुआ। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता जैसे शहरों में बिहारी प्रवासी मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है, पंजाब जैसे राज्य में खेती के लिए खास तौर पर बिहार से खेत मजदूर मजदूर बुलाए जाते हैं। बिहार से अन्य राज्यों में प्रवासी मजदूरों के आने जाने के लिए बिना आरक्षण वाली जनसेवा एंव जनसाधारण एक्सप्रेस रेलगाडियां़ चलाई गई हैं। इसे अगर प्रवासी एक्सप्रेस के नाम से बुलाया जाए तो कोई गलत न होगा।

यू तो पूरे समाज में गरीबों को घृणा की नजर से देखने की प्रवृति हमारे समाज में बढ़ी है लेकिन बेरोज़गारी व बदहाली के कारण हो रहे प्रवास से अन्य शहरों एंव राज्यों में बिहारी मजदूरों को बहुत लाचार की नजर से देखकर छींटाकशी एंव बदनाम किया जाता है। सबसे अधिक मेहनती होने के बावजूद कभी आसाम में बिहारी के नाम पर हमलों का सामना करना पड़ा है तो कभी मुम्बई में मनसे के राजठाकरे उत्तर भारतिये के नाम पर, कभी दिल्ली की मुख्यमंत्री तो कभी उपराज्य बिहारी मजदूरों को निशाना बनाते हैं। ऐसा महसूस होता है मानों बिहारी मजदूरों को अन्य शहरों में सम्मान के साथ जीने का अधिकार नहीं है। यहां एक बात और भी गौर तलब है कि कानून के जानकारों का भी ऐसा समय में जबान बन्द रहता है।

जनतंत्र में सम्मान: बिहारी प्रवासी मजदूरों में अधिक वह हैं जो असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। इन मजदूरों पर जब कभी किसी भी प्रकार का हमला होता है, उस समय कोई राजनैतिक पार्टियाँ या प्रदेश के बड़े नेता लालू, नितीश, राबड़ी, रामविलास, सुशील मोदी, शरद यादव आदि जैसे आम तौर पर मजदूरों के समर्थन में नहीं आते हैं। यहां एक बात और गौर करने की है कि सभी राजनैतिक पार्टियां इस मुददे पर खुद को वचनवद्ध मानती हैं एंव उनके संगठन का इस भेद भाव के खिलाफ पारित प्रसताव भी होगा जो केवल दिखाने के लिए है।

ऐसा इस लिए होता है क्योंकि यह जनतंत्र है। जनतंत्र में केवल उनका सम्मान किया जाता है जो वोट देते हों, जिनका वोट नहीं होता उनके मुद्दे हमेशा दबे रह जाते हैं। और ये बिहार के असंगठित क्षेत्र के प्रवासी मजदूर इन से किसी का न तो वोट बढ़ता है और न किसी का वोट घटता है इस लिए न तो ये घर के हैं और न घाट के हैं।

बिहार चुनाव आज से ठीक एक महीने बाद शुरू होने जा रहा है इस चुनाव में बिहार से बाहर रह रहे (अन्दाजन) 50 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों में से आधे से अधिक का इस देश की जनतंत्र में कोई भूमिका ही नहीं है। और जनतंत्र में जिसकी कोई भूमिका नहीं होती उसका सम्मान तो दूर की बात है उसके हक की कोई बात ही नहीं करता।

जनतंत्र में सभी के मताधिकार को सुनिश्चिित करना बहुत जरूरी है तभी उसके हकों की रक्षा सम्भव है।

इस तरह के वह तमाम बालिग मतदाता चाहे वह मजदूर हो या छात्र या किसी खास वजह से निवास कर रहे हों उनके मत को शामिल कराने के लिए उन्हें चुनाव के समय वापस जाने, पोस्टल बैलेट द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करने, अन्य शहरों में मतदान केन्द्र बनाकर मत लेने या कोई और रास्ता निकालने की जरूरत है ताकि देश के सभी नागरिक अपना मत दे सकें।

हमारे देश में आर्मी एंव पोलिंग बूथ पर तैनात कर्मचारियों के लिए पोस्टल बैलेट का प्रावधान है। यह तय है कि बिहार के इस विधान सभा चुनाव में प्रवासी मजदूरों के दाताधिकार को पाना समभव नहीं लेकिन अगर आने वाले दिनों में इसे प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना है तो भी इसे चुनावी मुददा ही बनाना होगा। क्योंकि अन्य समय में भी इस मुददे पर बात तो होती रही है लेकिन इस पर कोई पार्टी या बड़े नेता इसे मुददा नहीं बनाते।

प्रवासी मजदूरों के मताधिकार के प्रयोग कर उनके सम्मान की रक्षा में राजनैतिक में हस्तक्षेप कर सम्मान से जीवन जीने के लिए परामर्श की ज़रुरत है।



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