बिहार चुनाव 2010: मुददा त्यौहार का उपहार या लोगों की परेषानी
6 सितम्बर 2010
सदरे आलम
रमजान के पाक महीने में चीफ एलेक्ष्न कमिष्नर जनाब कुरैषी साहब ने आज दिल्ली में प्रेस कान्फ्रेंस कर बिहार चुनाव के तारीखों की घोषणा की। काॅमनवेल्थ गेम्स एंव माओवाद को मददे नजर रखते हुए 6 चरनों में चुनाव अक्टूबर 21, 24, 28, नवम्बर 1, 9 और 20 को होंगे, 24 नवम्बर को वोटों की गिनती होगी एंव 27 नवम्बर तक सरकार का गठन होना है।
बिहार जैसा पिछड़ा राज्य जिसे न केवल जातिवाद, सामंतवाद, गबन, घोटाले, सैलाब व गुण्डा गर्दी ने बरबाद किया बल्कि राजद की सरकार के साथ-साथ जदयू की पिछली सरकार के बड़बोले पन एंव विकास के डंके ने भी भरोसा तोड़ा है। विकास के नाम पर पढ़े लिखे तबके को अपने करीब लाने की कोषिष की गई जबकि पिछली सरकार के कार्य काल में विकास कम सैलाब व सूखे से बिहार का विनाष ज्यादा हुआ है। इस मामले में लालू, रामविलास और सुषील मोदी को भी बिहार की सम्सयाओं के हल के रास्ते की जानकारी नहीं, हवा में तीर चलाने के इलावह इनके पास भी कोई ठोस दूसरा रास्ता नहीं है। ऐसे समय में मुद्दों से बचकर निकलने का रास्ता इन सब के पास मौजूद है।
वर्ष 2010 के चुनाव का एलान ऐसे समय में हुआ है जब ईद जैसा त्यौहार सामने है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती, अब से इस चुनाव के खत्म होने तक दुर्गा पूजा (17 अक्टूबर) दिपावली (5 नवम्बर) छठ (11 नवम्बर) और बक्ऱेईद (17 नवम्बर) को मनाये जाएंगे।
यहां प्रष्न यह खड़ा होता है कि क्या इस चुनाव का मुददा बिहार की परेषानी सूखा, बाढ़, पलायन, बेरोजगारी, खेती, षिक्षा आदि होगी या फिर मुद्दे से भटकाने के लिए लोगों में त्यौहार के नाम पर तरह-तरह के इतर से लेकर दिपावाली की मिठाइयां, पटाखे, सेवईयां व बक्रे़ईद के कोफते और कबाब के साथ बिहार के मुददों को भी इन तथा कथित नेताओं द्वारा हजम करने की कोषिष की जाएगी।
पर्व त्यौहार हमारी संस्कृति का हिस्सा हंै, यही वह मौके हैं जब हम अपने पुराने गिले-षिक्वे को भूल कर गले मिलते हैं एंव सेवैयां व मिठाईयां खाते हैं। लेकिन इस बार के त्यौहारों की मठाई को खाते समय अगर ध्यान न रखा गया तो इसका मजा आने वाले 5 सालों तक लिया जा सकता है।
आज जरूरत इस बात की है कि हम ईद, दुर्गा पूजा, दीपावली, छठ, एवं बक्रेईद को पूरे हर्ष व उल्लास के साथ मनायें लेकिन कहीं ऐसा न हो कि हमारे त्यौहार का दुरुपयोग हो और हम तमाषाई बन कर देखते रह जायंे।
हमें अपने त्यौहार का आनन्द लेते हुए राजनैतिक मुद्दे बेरोजगारी, बदहाली, सैलाब, सूखा, षिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, बिजली, सुरक्षा, मनरेगा एंव राषन व्यवस्था जैसे मुद्दों को सामने लाना है। बिहार विधान सभा चुनाव के समय में एक बात और बहुत जोर से कहने की जरुरत है कि चुनाव किसी विधान सभा क्षेत्र के जातिये समीकरण में मास्ट्री हासिल करने का नाम नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के राजनैतिक मुद्दों को सफलता पुर्वक जमीन पर उतारने के तरीके पर मत प्राप्त करने का नाम है।
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